Sunday 28 October 2018

पहनावा : संस्कृति और पहचान

पहनावा और हमारी पहचान...! तन्वी को सब्जी मंडी जाना था। उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे-किनारे सब्जी मंडी की ओर चल दी। तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी - ''कहाँ जायेंगी माता जी ?'' तन्वी ने ''नहीं भैय्या'' कहा, तो ऑटो वाला आगे निकल गया। अगले दिन तन्वी अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी, तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी - ''बहन जी मोहपुरी ही जाना है क्या ?'' तन्वी ने मना कर दिया। पास से गुजरते उस ऑटो वाले को देख कर तन्वी पहचान गयी, कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था। आज तन्वी को अपनी सहेली के घर जाना था। वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो का इंतजार करने लगी। तभी एक ऑटो आकर रुकी - ''कहाँ चलेंगी मैडम ?'' तन्वी ने देखा, ये वो ही ऑटोवाला है, जो कई बार इधर से गुजरते हुए, उससे पूछता रहता है, चलने के लिए। तन्वी बोली - मधुबन कॉलोनी है ना सिविल लाइन्स में वहीँ जाना है, चलोगे ? ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला - चलेंगें क्यों नहीं मैडम ? आ जाइये। ऑटो वाले के ये कहते ही तन्वी ऑटो में बैठ गयी। ऑटो स्टार्ट होते ही तन्वी अपनी जिज्ञासा वश उस ऑटोवाले से पूछ ही बैठी - भैय्या एक बात बतायेंगें ? दो-तीन दिन पहले आप मुझे माता जी कह कर चलने के लिए पूछ रहे थे, कल बहन जी और आज मैडम ! ऐसा क्यूँ ? ऑटोवाला हँसते हुए बोला - सच बताऊँ। आप जो भी समझेँ, पर किसी का भी पहनावा, हमारी सोच पर असर डालता है -- ● आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थी, तो एका-एक मन में आदर के भाव जगे, क्योंकि मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है। इसीलिए मुंह से खुद ही ''माता जी'' निकल गया। ● कल आप सलवार-कुर्ते में थीँ, जो मेरी बहन भी पहनती है। इसीलिए आपके प्रति स्नेह का भाव जगा और मैंने ''बहन जी'' कह कर आपको आवाज़ दे दी। ● आज आप जींस-टॉप में हैं, और इन कपड़ोँ मेँ कम से कम माँ या बहन के भाव तो नहीँ जागते, इसीलिए मैंने आपको "मैडम" कह कर बुलाया..! सीख -- संस्कार हित मे पहनावा पर विशेष ध्यान देवें।

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